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सीवान: बिहार के सीवान जिले के सपूतों का देश की आजादी में अहम योगदान रहा है. यहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने भी देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी. इसी वजह से सीवान के महराजगंज को वीरों और शहीदों की धरती कहा जाता है. जिसकी गाथा जिले के बच्चे- बच्चे जानते हैं.

जिले के महराजगंज के एक या दो नहीं बल्कि 27 स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की आजादी के लिए सड़क से लेकर अंग्रेजी हुकूमत के हुक्मरानों की छक्के छुड़ा दिए थे. गोली खाने के बावजूद अग्रेजी सैनिकों को थाने से उखाड़ फेंका. साथ ही भारत का तिरंगाथाने में लहराकर अग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध आवाज बुलंद की. परिणाम स्वरूप आज देश स्वतंत्रत है. वहीं इन स्वतंत्रता सेनानियों के याद में महराजगंज में एक शहीद स्मारक बनाए गए हैं. जिसको 15 अगस्त और 26 जनवरी को याद किया जाता है.

सर पर कफन बांध अंग्रेजी हुकूमत के छुड़ाए थे छक्के

 

स्वतंत्रता सेनानियों की वीरगाथा देश को आजादी दिलाने में महाराजगंज के लोगों की भूमिका अग्रणी रही है. जिन्होंने सर पर कफन बांध आखों में देश की आजादी का सपना लिए अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छक्के छुड़ा दिए. महाराजगंज के वीर शहीद फुलेना प्रसाद के नेतृत्व में आजादी के मतवालों की टोली थाना, रजिस्ट्री कचहरी तथा रेलवे स्टेशन तिरंगा धवज फहरा दिया. थाना पर तिरंगा फहराने के दौरान फुलेना प्रसाद अपने सीने में सोलह गोली खाने के बाद भी तिरंगा को झुकने नहीं दिया था.

दरअसल, 6 अगस्त 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी. देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. अंग्रेजों का दमन दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था.ऐसे में महात्मा गांधी ने भारतीयों को नारा दिया करो या मरो, उसी नारा पर देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का सूत्रपात हुआ. महाराजगंज की धरती पर आजादी के दीवाने एकत्रित हुए. ढाई सौ नौजवानों की टोली 16 अगस्त को शहीद फुलेना प्रसाद के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया.

 

16 गोली खाकर फूलन बाबू ने लहराया तिरंगा

अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए शहीद फुलेना प्रसाद हाथ में तिरंगा लिए हुए नौजवानों की टोली के साथ आगे बढ़ रहे थे. उनके साथ उनकी पत्नी तारा रानी, देवशरण सिंह, उमाशंकर दत्त शर्मा, उमाशंकर प्रसाद, सरयुग प्रसाद, चंद्रिका राम, बंसीलाल, इन्दर प्रसाद सोनार सहित क्रांतिकारियों का काफिला बढ़ रहा था. काफिला सबसे पहले महाराजगंज रेलवे स्टेशन पर पहुंचा जहां माल गोदाम के खाद्यान को लूट लिया गया. वहां से काफिला रजिस्ट्री कचहरी पहुंचा. जहां अंग्रेज पुलिस पोजीशन लिए खड़ी थी. अंग्रेजी सैनिकों के देख काफिला रुक गया. जिस पर फुलेना बाबू की पत्नी तारा रानी ने अपने पति को ललकारते हुए कहा कि आप लोग मरने से डरते है तो दीजिए तिरंगा और मेरा चूड़ी पहन लीजिए. पत्नी की ललकार पर फुलेना बाबू हाथ में तिरंगा लिए थाना गेट पर पहुंचे. जहां थानेदार रमजान अली ने तिरंगा फहराने से मना किया. फुलेना बाबू नहीं माने और हाथ में तिरंगा लिए आगे बढ़ चले. थानेदार रमजान अली फुलेना बाबू सहित क्रांतिकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया. फुलेना बाबू को 16 गोली लगी फिर भी वह हार नहीं माने और हाथ में तिरंगा लिए थाने पर पहुंच तिरंगा फहरा कर भारत माता के गोद में हमेशा के लिए अपने को समर्पित कर दिया.

 

शहीदों के स्मारक की बदहाल हो चुकी है स्थिति

आजादी की लड़ाई में प्रखंड के बंगरा गांव की भूमिका भी काफी अहम रही है. बंगरा गांव की धरती ने 27 स्वतंत्रता सेनानी को जन्म दिया. लेकिन समय के धार ने धीरे-धीरे उन सब को हमसे छीन लिया अब सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह हम सभी के बीच है. दुर्भाग्य यह है कि आजादी के इन दीवानों को प्रशासन इस कदर भूल गया कि उनके पास इनकी सूची तक भी उपलब्ध नहीं है.आज सिर्फ छोटे से पत्थर पर इनके नाम अंकित है. कहीं स्मृति चिह्न तक नहीं. सिहौता बंगरा उच्च विद्यालय के प्रागंण मेंस्थापित स्मृति के साथ एक छोटे से पत्थर पर 27 स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अंकित हैं, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.

देश की आजादी में इन वीरों ने निभाई थी अहम भूमिका

इन वीर सपूतों के कुर्बानियों के बदौलत ही देश आजाद हुआ. जब भी ऐसे वीरों की चर्चा होती है, उनकी जन्मस्थली के प्रति सर आदर से झुक जाता है. देश में शायद ही कोई दूसरा गांव हो जहां के लोगों में आजादी के प्रति ऐसी दीवानगी दिखी हो. शहीद देवशरण सिंह के अलावा रामलखन सिंह, टुकड़ सिंह, गजाधर सिंह, रामधन राम, रामपृत सिंह, सुंदर सिंह, रामपरीक्षण सिंह, शालीग्राम सिंह, गोरख सिंह, फेंकु सिंह, जुठन सिंह, काली सिंह, सूर्यदेव सिंह, बमबहादुर सिंह, राजनारायण उपाध्याय, रामएकबाल सिंह, तिलेश्वर सिंह, देवपूजन सिंह, रघुवीर सिंह, नागेश्वर सिंह, शिव कुमार सिंह, झूलन सिंह, राजाराम सिंह, सीताराम सिह, सुरेन्द्र प्रसाद सिह की अब यादें ही शेष हैं. गोरख सिंह, सीताराम सिंह व राजाराम सिंह को अंग्रेज गिरफ्तार नहीं कर सके तो इनके घर फूंक डाले इसके बावजूद इनकी देशभक्ति में कोई कमी नहीं आई.

27 स्वतंत्रता सेनानियों के बीच एक मात्र मुंशी सिंह हैं जीवित

सीवान जिले के महराजगंज के बंगरा गांव के एक मात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी 95 वर्षीय मुंशी सिंह है. तीन जिलों अर्थात सीवान, छपरा ,गोपालगंज में मात्र एक ही जीवित स्वतंत्रता सेनानी बचे हुए हैं. जिन्होंने भारत की आजादी को अपनी आंखों से देखा तथा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाई. आज भी वह देश की आजादी को याद कर भावुक हो उठते हैं तथा उस समय किस परिस्तिथि में भारत आजाद हुआ यह बातें भी बताते हैं. वे बताते हैं कि उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल का विद्यार्थी था उसी समय आजादी के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया. गोली की परवाह नहीं किया था और देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1942 के आंदोलन में कूद पड़ा. मुझे भी अंग्रेजी हुकुमत की बर्बरता के शिकार होना पड़ा था.

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