Ram Navami

रामनवमी (चैत्र नवरात्रि) व्रत पूजा विधि एवं व्रत कथा (Chaitra Ram Navami Vrat Pooja Vidhi in Hindi) : नवरात्रि भारत के महान पर्वों में से एक है जो सामूहिक धर्मानुष्ठान के रूप में किसी न किसी प्रकार हर वर्ष बड़े उतसाह के साथ मनाया जाता है | रामलीला, रासलीला, गणगौर, दुर्गापूजा आदि के कार्यक्रम आश्विन मास में होते है और चैत्र में फूलडोल और रामनवमी जैसे उत्सव तरह ; तरह से आयोजित की जाती है | चैत्र नवरात्रि (रामनवमी) का पर्व हमेशा होली के कुछ दिनों बाद मनाया जाता है | इस दिन को हम लोग भगवान राम जन्मोत्सव के रूप में मनाते है |

भगवान राम सदाचार के प्रतीक है और इन्हें मर्यादापुरुषोत्तम भी कहा जाता है | रामनवमी के दिन प्रतिवर्ष जुलूस निकाला जाता है | उसमें राम-सीता-लक्ष्मण की मूर्तियाँ रखी जाती है | वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस का पाठ व गायन किया जाता है | घरों में मिष्ठान बनाया जाता है, कन्याओं को भोजन कराया जाता है तथा पूजा – अर्चना की जाती है |

Ram Navami in Hindi रामनवमी का महत्व :  वसंत ऋतु में जिस प्रकार प्रकार प्रकृति का उल्लास अभिनव पुष्प ; पल्लवों में, प्राणीमात्र में, विशेष रूप से उभरने वाली उमंगों में दृष्टिगोचर होता है, उसी प्रकार चेतना जगत में उच्चस्तरीय उभार नवरात्र की पूर्णवेला में आते है | यह समय आत्मिक प्रगति के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों की सफलता की दृष्टि से अतीव उपयोगी है | इसलिए साधना के क्षेत्र में रामनवमी को सदा से बहुत महत्व दिया जाता रहा है | संध्यावंदन के लिए सध्याकाल अतीव उपयोगी समझी जाती है क्योंकि ये समय दिन और रात के मिलने का समय हैं | ठीक इसी प्रकार सर्दी और गर्मी की ऋतु जब मिलती है तो आश्विन और चैत्र के नवरात्र पर्व आते हैं | इन दिनों की गई उपासना का फल सामान्यकाल की अपेक्षा, सोमवती अमावस्या को स्नान करने की तरह, अधिक माना जाता है | इसलिए साधना के अभ्यासी को इन दिनों कुछ विशेष करना चाहिए | जो नियमित रूप से नहीं कर सके उन्हें रामनवमी की विशिष्टता और पवित्रता को ध्यान में रखते हुए कुछ न कुछ तो साधनाक्रम बना ही लेना चाहिए |

रामनवमी व्रत-कथा: ( इक्ष्वाकु – वंश में दशरथ नाम के राजा अयोध्या में राज्य करते थे | उनकी तीन रानियाँ (पत्नियाँ) थी | कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा | राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी अत: ऋषि – मुनियों ने संतान प्राप्ति के लिए उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी | उन्होंने वसिष्ठ ऋषि से यज्ञ करने के लिए कहा | वसिष्ठ ऋषि ने श्रृंगी ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया | यज्ञ प्रारंभ हुआ | उस यज्ञ में खीर बनाई गई | उस खीर को दो भागों में बाटकर कौशल्या और कैकेयी को दे दिया गया | कौशल्या और कैकेयी ने अपने – अपने हिस्से से थोड़ी – थोड़ी खीर निकालकर सुमित्रा को भी दे दी अत: कौशल्या को एक पुत्र राम, कैकेयी को एक पुत्र भरत तथा सुमित्रा को दो पुत्र लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | कौशल्या के पुत्र राम का जन्म चैत सुदी नवमी सोमवार को हुआ था | चारो भाई क्रमश: बढ़ने लगे और साथ ही उनके पराक्रम व वीरता की भी चर्चा फैलने लगी | उस वक्त राक्षस ऋषि ; मुनियों के यज्ञ में बाधा डालते रहते थे और उन्हें परेशान करते थे | राम की वीरता को सुनकर विश्वामित्र राजा दशरथ के पास आए और उनके दो बेटों राम और लक्ष्मण को राक्षसों का संहार करने के लिए ले गए | राम और लक्ष्मण ने सारे राक्षसों को मारकर यज्ञ को निर्विघ्न कर दिया | एक दिन विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ परिभ्रमण करते हुए जनकपुर पहुँचे | उस दिन जनकपुर के राजा की पुत्री सीता का स्वयंवर हो रहा था | देश ; विदेश के अनेक राजा स्वयंवर में आये थे | एक – एक करके राजाओं ने शिव – धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की लेकिन   सभी राजा असफल रहें | “ भूप सहस दस एकहि बार, लगे उठावन टरे न टारा |” जनक जी उदास होकर बोले ‘वीर विहीन मही मैं जाना |’राम ने जब धनुष पर प्रत्यंचा चढाई तो टूट गया और उनका विवाह सीता से हो गया | जब वापस लौटे तो राजा दशरथ उन्हें युवराज बनाने और तदन्तर सिंहासनारूढ़ करने की घोषणा कर दी | कैकेयी का राम का युवराज बनन मंजूर नही था | इसलिए वह कोप भवन में चली गई | राजा दशरथ घबराएं हुए कोप भवन में पहुंचे | कैकेयी को राजा दशरथ ने देवा-सुर-संग्राम में जो दो वर मांगने को कहा था उस वक्त उन्होंने कहा था जब अवसर आएगा तब मांग लुंगी | आज उन्होंने राजा दशरथ से वही दो वर मांगे कि राम को चौदह वर्ष का वनवास और भारत को राज गद्दी | राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए वन चले गये | भरत उस वक्त ननिहाल में थे | राम वियोग में दशरथ के प्राण पखेरू हो गये | वसिष्ठ ने दशरथ की मृत्युपरांत भरत को बुलाया और उन्हें सारा वृत्तान्त बताया | भरत अयोध्या की जनता के साथ राम को पुन: वन से वापस लाने के लिए चल पड़े | चित्रकूट में दोनों भाइयों की भेट हुई | भरत और अयोध्यावासियों ने कातर वाणी में उनसे वापस लौटने का आग्रह किया लेकिन राम ने मना कर दिया | अंत में भरत राम की खडाऊं लेकर अयोध्या लौट आये और खडाऊं को सिहांसन पर रखकर राम की प्रतिमूर्ति के रूप में मानकर राज्य संचालन करने लगे | भरत महल में न रहकर राम की भाति अयोध्या के समीप नंदीग्राम में निवास करने लगे |

जंगल में एक दिन एक स्वर्ण माया – मृग का बध करने के लिए राम उसके पीछे दौड़े | बहुत देर तक जब राम वापस नहीं लौटे तो सीता जी अति व्याकुल हो गई | उन्होंने लक्ष्मण को राम को खोजने के लिए भेजा | लक्ष्मण को नारी ह्रदय पर विश्वास नहीं हुआ अत: उन्होंने झोपडी के चारों ओर एक लकीर खींच दी और सीता जी को उसके बाहर जाने से निषेध कर दिया | उसी वक्त लंकाधिपति रावण को सुअवसर प्राप्त हुआ और भिखारी का वेश धारण करके भिक्षा मांगने आया | सीता उसे लक्ष्मण – रेखा के भीतर से ही भिक्षा दे रही थी | उसने भिक्षा लेने से मना कर दिया और उनसे आग्रह किया कि वह उन्हें भिक्षा लाइन के बाहर आकर दें | ज्योंही सीता ने लक्ष्मण रेखा के बाहर कदम रखा रावण उन्हें हरकर लंका ले गया | बीच रास्ते में जटायु ने रावण का रास्ता रोका तो उसने जटायु के पंख काट दिए | राम सीता को झोपडी में न पाकर विचलित हो उठे | उन्होंने लोगों से तो सीता के बारें में पुछा ही साथ ही वन के पेड़ पौधों से भी पूछते रहे | “हे खग ! मृग ! हे मधुकर – श्रेणी ! तुम देखी सीता मृगनयनी ?

चलते – चलते मार्ग में राम की भेट जटायु से हुई | उसने सारा विवरण कह सुनाया | अब राम का क्रोध भड़क उठा | राम ने हनुमान और सुग्रीव की वानर सेना के सहयोग से शिव की आराधना कर समुंद्र पर पुल बांधा | इस प्रकार अत्याचारी राजा रावण को युद्ध में मारकर अपनी पत्नी सीता को मुक्त कराया | राम ने लंका राज्य को रावण के भाई विभीषण को शौप दिया | जब राम रावण का वध करके और चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे तो खूब धूम – धाम से उनका स्वागत किया गया और उत्सव मनाया गया | ऐसे मर्यादापुरुषोत्तम राम के जन्म को उत्सव के रूप में रामनवमी के रूप में मनाया जाने लगा |

चैत्र नवरात्रि की पूजन-विधि  – चैत्र नवरात्रि की पूजन-विधि भी शरद नवरात्रि की तरह कलश स्थापना से किया जाता है | कलश स्थापना के एक दिन पहले ही जौ और कलश को गंगाजल में डुबाकर रख दें | इससे जौ और कलश निर्मल हो जाएंगे | आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन स्नानादि से निवृत होकर कलश पर चंदन का लेप लगाकर स्थापना करें | कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्रि व्रत का संकल्प ले | संकल्प लेने के पश्चात् गणपति पूजन, पुन्यावाचन, नान्दी श्राद्ध, मातृकापूजन और ऋत्विक वरण की प्रतिज्ञा लें | तत्पश्चात धरती माँ का आशीर्वाद लेकर कलश के अंदर पंच रत्न, दूर्वा व पंच पल्लव (पंच पल्लव : आम के पत्ते, बरगद, गूलर, पीपल, पाकर के पत्ते ) डालें | एक हरे नारियल पर लाल वस्त्र लपेटकर कलश के ऊपर रखें | कलश के नीचे रखने के लिए गंगा बालू का प्रयोग करें | ऊं क्लीं दुर्गाय नम: कहकर उसमें जौ को बोएं | कलश के पास ही नवग्रह भी बना लें | उपर्युक्त सभी क्रियाओं को करने के पश्चात् जौ से भरा पात्र कलश के ऊपर रखकर वरुण देव की पूजा – अर्चना करें व माँ दुर्गा का आह्वान करें | आसन, आचमन, पास, अर्थ, पंचामृत, स्नान, वस्त्र, अलंकार, गंध, अक्षत, पुष्प व परिमल से अंग – पूजन करें | इस क्रिया से प्रतिपदा से नवमी तक माता के नौ रूपों की पूजा – अर्चना करें |

रामनवमी 2024 चैत्र नवरात्रि कब है ? 

इस बार चैत्र नवरात्रि ता. 9 अप्रैल 2024 से आरम्भ होकर ता. 17 अप्रैल 2024 रामनवमी को समाप्त होने है | यह साधना सदा पूरे नौ दिन की होती है |

राम नवमी, 17 अप्रैल 2024 को:

9 -17 अप्रैल 2024 तक मनाई जाएगी नवरात्रि

9 अप्रैल: प्रथम नवरात्र, नवरात्र स्थापना, बसंत नवरात्र प्रारंभ, घटस्थापना, शैलपुत्री का पूजन

10 अप्रैल: द्वितीय नवरात्र, सिंजाजा, चेटीचंड, झूलेलाल जयंती, ब्रह्मचारिणी का पूजन

11 अप्रैल: तृतीय नवरात्र, गणगौर पूजन, मेला गणगौर, चन्द्रघण्टा का पूजन

12 अप्रैल: चतुर्थ नवरात्र, मेला बूढ़ी गणगौर, कूष्माण्डा का पूजन

13 अप्रैल: पंचम नवरात्र, श्री-लक्ष्मी पंचमी, स्कंदमाता का पूजन

14 अप्रैल: षष्ठ नवरात्र, यमुना जयंती, कात्यायनी का पूजन

15 अप्रैल: सप्तम नवरात्र, कालरात्रि का पूजन

16 अप्रैल: अष्टम नवरात्र, दुर्गाष्टमी, महाष्टमी, महागौरी का पूजन

17 अप्रैल: नवम नवरात्र, श्री राम नवमी, नवरात्रि पूर्ण, सिद्धिदात्री का पूजन

18 अप्रैल: नवरात्र व्रत पारणा व उत्थापन

चैत्र नवरात्रि में साधना : दिन के अनुसार करें देवी की पूजा 

इस चैत्र नवरात्रि  प्रतिपदा :–  शैलपुत्री पूजा,  द्वितीया – चन्द्र दर्शन सिंधारा दूज ब्रह्मचारिणी पूजा,  तृतीय –  गौरी तीज, सौभाग्य तीज, चन्द्रघंटा पूजा,  वरद विनायक चौथ, चतुर्थी – कुष्मांडा पूजा, नाग पूजा  पंच्च्मी –  स्कन्दमाता पूजा, स्कन्द षष्ठी – यमुना छठ, कत्यानी पूजा सप्तमी – महा सप्तमी, कालरात्रि पूजा अष्ठमी – महागौरी पूजा नवमी – राम नवमी की पूजा का विधान है | रामनवमी में अष्टमी और नवमी सबसे महत्वपूर्ण तिथि मानी गई है  | अत: यह तिथि महातिथि के नाम से भी जानी जाती है |

चैत्र नवरात्रि : रामनवमी के पीछे की पौराणिक कथा 

रामनवमी पर माँ दुर्गा की पूजा :– अर्चना करने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है –: एक सुरथ नाम का राजा था | वह बहुत आलसी प्रवृत्ति का था | वह स्वयं कोई कार्य न करके अपने राजकीय – कार्य मंत्रियों से करवाता था | राजा की अराजकतापूर्ण व्यवहार से लोग परेशान थे | राजा के आलसी प्रवृत्ति को भांपकर शत्रुओं ने राजा के राज्य पर हमला कर दिया | राजा के मंत्रियों ने भी साथ नहीं दिया और शत्रुओं से हाथ मिला लिया | परिणामस्वरूप राजा को राज्य से हाथ धोना पड़ा गया | राजा इधर – उधर वनवासी बनकर भटकने लगा | एक दिन राजा की मुलाकात मोह में पड़े हुए एक वैश्य से हुई | उसकी मोह कथा को सुनकर राजा व वैश्य दोनों ही मेघ ऋषि के आश्रम पहुंचे | मेघ ऋषि ने दोनों से उनके आने का कारण पूछा | तब राजा ने ऋषि को अपना सारा वृत्तान्त विस्तार से बताया कि कैसे उसके बन्धु – बान्धवों ने उसे राज्य से निकाल दिया, पर वह उनके मोह को अपने ह्रदय से नहीं निकाल पाया | ऋषिवर कृपया आप हमें यह बताएँ कि यह कैसा मोह है और हमारे मन में किसका निवास है ? मेघ ऋषि ने कहा राजन, मन शक्ति के अधीन हैं | आदिशक्ति भगवती को दो स्वरूप हैं – विद्या व अविद्या | अविद्या मोह के जन्म का मूल कारण है | अत: जो आदिशक्ति भगवती का पूजन करता है, वह उसका विद्या स्वरुप प्राप्त कर जीवन में मोह के बंधन से मुक्त हो जाता है | आदिशक्ति भगवती के विद्या स्वरूप को प्राप्त करने के मेघ ऋषि ने राजा और वैश्य को भगवती के आराधना की विधि बताई | दोनों ऋषि से आज्ञा लेकर नदी के तट पर तपस्या करने निकल पड़ें | तीन वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें माँ भगवती ने दर्शन दिए | माँ भगवती का आशीर्वाद पाकर वैश्य मोह बंधन से मुक्त होकर आत्म; चिंतन में लीन हो गया | राजा सुरथ को उनका राज्य वापस मिल गया | साथ ही राजा ने अपने पूरे राज्य में यह ऐलान करवा दिया कि हर साल आश्विन मास व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में प्रत्येक व्यक्ति कलश स्थापना करके आदिशक्ति भगवती की श्रद्धा से पूजा – अर्चना करें | तब से आज तक आदिशक्ति भगवती का नवरात्रि में पूजा का प्रचलन है तथा पर्व के रूप में इसे पूरे देश में धूम – धाम से मनाया जाता है |

चैत्र नवरात्रि का हवन रखें शुद्ध तन और मन :-

स्वस्थ जीवन, सुखी परिवार, शत्रु पर विजय और आरोग्य के लिए देवी मां का आशीष पाने का शुभ अवसर देता है रामनवमी | हमे नौ दिन के ब्रत के बाद रामनवमी / नवरात्रि का समापन हवन से करना चाहिए | नवरात्र में हवन का विशेष महत्व रहता है | हवन से हम तन के साथ मन को भी शुद्ध कर सकते हैं | आइए रामनवमी के मौके पर जानते हैं कि हवन के फायदे |

 शास्त्रों के अनुसार – हवन करने से रामनवमी में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है | इससे नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है | हवन में डाली जाने वाली जड़ी बूटियों से युक्त सामग्री अग्नि में पड़ते ही घर के हर कोने को शुद्ध कर देती हैं |  विषानुओं को खत्म कर देती हैं |

बीमारियों से मिलती है निजात – सर्दी,जुकाम,नजला, हर तरह का बुखार ,सिर दर्द, उच्च रक्तचाप ,डिप्रेशन, अग्नाशय सम्बन्धी रोग, श्वास और खाद्य सम्बन्धी रोग और यकृत संबंधी रोग में फायदेमंद है |

एक अनुमान के मुताबिक रामनवमी में हवन से सौ से भी ज्यादा आम और खास रोग यज्ञ से ठीक हो जाते है | इसके अलावा रोग, दोष, गृह कलेश, वास्तु दोष, पित्रि दोष, नकारात्मक शक्तियों से भी राहत मिलती है |